पाली में बादशाह की सवारी भी नहीं निकली, सात दशक बाद टूटी गांवशाही गेर की परम्परा।

पाली में बादशाह की सवारी भी नहीं निकली, सात दशक बाद टूटी गांवशाही गेर की परम्परा।
पाली शहर के जोधपुरिया बारी से वापस लौटती पुष्करणा समाज की गेर
जोधपुरिया वास की बारी से लौटी पुष्करणा समाज की गेर
पाली/राजस्थान (द भास्वर टाईम्स समाचार पत्र न्यूज नेटवर्क) धुलण्डी के दिन पाली में निकलने वाली गांवशाही गेर सात दशक बाद इस बार नहीं निकली। पुष्करणा समाज की गेर जोधपुरिया वास की बारी तक जाने के बाद वापस लौट गई। उधर, बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं मिलने के कारण बादशाह की सवारी भी नहीं निकाली गई।
पाली में धुलण्डी के दिन जोधपुरिया वास की बारी से पुष्करणा समाज की गेर के बाहर निकलने के बाद वह गांवशाही गेर में बदल जाती थी। इस गेर के प्यारा चौक से गुजरने के बाद गेर पास होने का ऐलान किया जाता था। इसके बाद अगले दिन बादशाह की सवारी निकलती थी। जिसके बाद ही पाली का मुख्य बाजार खुलता था। इस बार रामनवमी की शोभायात्रा को लेकर आयोजित बैठक में बादशाह की सवारी को गुलामी का प्रतीक बताते हुए कुछ लोगों ने उसे बंद करने का कहा था। उस समय से ही विवाद चल रहा था।
विवाद के चलते प्रशासन की ओर से बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं दी गई। इस पर धुलण्डी पर गांवशाही गेर भी नहीं निकली। हालांकि, पुष्करणा समाज की गेर जोधपुरिया वास में बारी के पास पहुंची थी, लेकिन वहां पर बादशाह की सवारी निकालने की इजाजत नहीं मिलने से पुष्करणा समाज की ओर से झण्डा व बीरबल देने से इनकार किया गया। इसके बाद उनकी गेर वापस लौट गई। ऐसे में सालों बाद इस परम्परा का निर्वहन नहीं हो सका।
करीब सात दशक पहले बंद रहा था बाजार
करीब सात दशक पहले पाली शहर में गांवशाही गेर विवाद के कारण पास नहीं हो सकी थी। उस समय करीब सात-आठ दिन तक बाजार बंद रहा था। अग्रवाल समाज के जयकिशन बजाज ने बताया कि इसके बाद तत्कालीन जोधपुर के राजा की ओर से गेर को पास कराने का आदेश दिया गया था। गेर पास होने के बाद शहर का बाजार खुला था।
चर्चा का विषय रहा बादशाह का स्वांग
पाली . वैसे तो पाली शहर में प्रशासन की अनुमति नहीं मिलने से बादशाह की सवारी नहीं निकाली जा सकी। लेकिन, मंगलवार को पाली शहर में सोमनाथ-सूरजपोल मार्ग पर निकाली गई गेर में पार्षद राकेश भाटी बादशाह का स्वांग रचकर शामिल हुए। उन्होंने बादशाह की पोशाक पर ‘बादशाह अभी जिंदा है... टोडरमलजी’ भी लिखवाया, जो शहर भर में चर्चा का विषय रहा।
परम्परा अनुसार मांगने पहुंचे झण्डा व बीरबल
बादशाह की सवारी में अग्रवाल समाज का बादशाह, माहेश्वरी समाज का शहजादा व पुष्करणा समाज का बीरबल होता रहा है। धुलंडी के दिन जोधपुरिया वास में अग्रवाल समाज की ओर से बीरबल के साथ पुष्करणा समाज से गांवशाही गेर का झण्डा मांगा जाता है। इस बार अग्रवाल समाज के लोगों ने बादशाह की सवारी को निकालने से इनकार कर दिया था। इस पर उनके समाज के लिए जयकिशन बजाज, गांवशाही गेर के संरक्षक पं. शंभुलाल शर्मा, कैलाश टवाणी आदि बीरबल व झण्डा लेने जोधपुरिया वास पहुंचे। पुष्करणा समाज ने उनसे बादशाह की सवारी निकालने के बारे में पूछा तो उन्होंने प्रशासन की इजाजत नहीं मिलना बताया। इस पर पुष्करणा समाज ने बीरबल व झण्डा देने से इनकार कर दिया और वापस लौट गए। इस दौरान विधायक भीमराज भाटी, नगर परिषद के पूर्व सभापति प्रदीप हिंगड़, पुष्करणा समाज अध्यक्ष दिनेश पुरोहित, दिलीप, पारस भाटी सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।
बाजार में अधिकांश दुकानें रही बंद
बादशाह की सवारी निकलने के बाद बाजार खुलने की परम्परा के चलते शहर का अधिकांश बाजार बंद रहा। हालांकि कई व्यापारियों ने प्रतिष्ठान खोले। धानमंडी में भी कुछ व्यापारियों ने प्रतिष्ठान खोले। इसके साथ ही बाइसी बाजार, सोमनाथ मार्ग, सर्राफा बाजार, उदयपुरिया बाजार, पुरानी सब्जी मण्डी आदि क्षेत्रों में कुछ व्यापारियों की ओर से प्रतिष्ठान खोले गए।
सांवरिया सेठ की बांटी खर्ची
शहर के धानमंडी स्थित गोकलेश्वर महादेव मंदिर में मंगलवार को सांवरिया सेठ की खर्ची बांटी गई। बादशाह की सवारी नहीं निकलने पर सर्व हिन्दू समाज की ओर से सांवरिया सेठ की सवारी निकालने की घोषणा की गई थी। सवारी निकालने की इजाजत नहीं मिलने पर मंदिर में ही सांवरिया सेठ का पूजन कर प्रसादी के साथ गुलाल के रूप में खर्ची का वितरण किया गया।