आने वाली पीढ़ी हमारी तस्वीर पर जूते की माला पहनाएगी और थूकेगी जैसे हालात....

आने वाली पीढ़ी हमारी तस्वीर पर जूते की माला पहनाएगी और थूकेगी जैसे हालात....
डगराराम पँवार

आने वाली पीढ़ी हमारी तस्वीर पर जूते की माला पहनाएगी और थूकेगी जैसे हालात....

नैतिकता पर चर्चा - लेखक की कलम से,,,,

डगराराम पँवार "
"नवनीत, "प्रदेश अध्यक्ष, राष्टीय दलित साहित्य अकादमी,


  बहुजन कर्मचारी, अधिकारी जब मनुवादी संगठन RSS से जुड़ेगा तो भी उसका गुलामो की तरह शोषण होगा, उसका ट्रांसफर होगा, उसका प्रमोशन रुकेगा, उसका फिक्सेशन नहीं होगा, इसकी शिकायतें भी होगी और नहीं जुड़ेगा तो भी यही हालत होगी। अगर नहीं होगी तो भी उसकी आने वाली पीढ़ी बेरोजगार ही घूमेगी।

अगर बहुजन अधिकारी-कर्मचारी अपने सामाजिक, वैचारिक, राजनीतिक संगठन जो पहले साहू अंबेडकर की विचारधारा को आगे बढ़ते हैं जैसे की भीम आर्मी/बामसेफ से जुड़ा रहेगा तो भी ऐसी समस्या आएगी और उसका सम्मान के साथ समाधान भी होता रहेगा।

  ऐसा इसलिए क्योंकि दुश्मन जाति देखकर शोषण, प्रमोशन, फ्रीकशेषन, ट्रांसफर की कार्यवाही करता है और अगर आप जागरूक हैं आप अपने फुले-साहू-अंबेडकर की विचारधारा से जुड़े सामाजिक, राजनीतिक, वैचारिक संगठन से जुड़े हुए हैं तो दुश्मन आपके खिलाफ कोई भी कार्यवाही करने से पहले 10 बार सोचेगा।
बिना सामाजिक ,राजनीति और वैचारिक संगठन के कर्मचारी अधिकारी  बिना सहारे वाली बेल(लता) /औरत की तरह है। जिसका अपना संगठन नहीं होता है दुश्मन उसे अपने संगठन मनुवाद/RSS के जाल में फंसा कर अपने ही समाज/केटगरी के खिलाफ इस्तेमाल करते हैं शोषण करते हैं।


 वह सब कुछ जानकार भी अनजान की तरह सब कुछ सहन करता रहता है। फिर या तो वह सुसाइड करता है या फिर रिटायर होने के बाद समाज के लोगों को या अपने संगठन के लोगों को ये सारी बातें बताता है।


 जिसका संगठन/सहारा नहीं होता उसका शोषण होना निश्चित है
             यह सारी बातें इसलिए लिखनी पड़ रही है क्योंकि एक अकेले डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान बनाकर उसमें मौलिक अधिकार देकर भूखे, नंगे, समाज, अनपढ़ समाज को अधिकारी, कर्मचारी बना दिया। लेकिन आज हालात यह हो गई है कि एक पढ़े लिखे कर्मचारी, अधिकारी का बेटा और उसकी आने वाली पीढ़ी बेरोजगार, अनपढ़, भूखे नंगे घूमने को मजबूर है।
आखिर ऐसा क्यों ????
ऐसा इसलिए क्योंकि जो कोई भी कर्मचारी, अधिकारी बना वह उसकी पिछड़े समाज की केटगरी के आधार पर संविधान में दिये गए प्रतिनिधित्व के आधार पर बना वह किसी जाति विशेष या किसी के नाम से उसे कर्मचारी अधिकारी नहीं बनाया या संविधान में किसी का नाम नहीं लिखा है कि उसे ही अधिकारी/कर्मचारी बनाया जाएगा। उसे कर्मचारी अधिकारी बनाया, उसकी समाजिक रूप से पिछड़ी, शोषित वंचित जाति के आधार पर उसकी कैटेगरी और उसे कैटेगरी के आधार पर उसे नौकरी मिली। 

सही मायने में अधिकारी/कर्मचारी जिस केटगरी से चुनकर आता है वह उसका प्रतिनिधित्व करता है और करना चाहिए था।लेकिन उसने ऐसा नहीं किया और उसे जिस कैटेगरी में उसे नौकरी मिली उसमें उसने प्रतिनिधित्व नहीं करके उसने अपनी मेहनत का ढिंढोरा पीटा और अपनी किस्मत का हवाला देकर अपना घर बनाने अपना पेट और पिछवाड़ा फुलाने में ही लग रहा। जिसका परिणाम यह हुआ कि वह स्वयं तो अधिकारी और कर्मचारी है लेकिन उसकी होने वाली औलाद और उसके नाते, पोते बेरोजगार घूम रहे हैं।

ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने बाबा साहब का दिया

खाया,,, सिर्फ खाया,,, सिर्फ खाया,,, लेकिन बाबा साहब की विचारधारा को उसने आगे नहीं बढ़ाया।

उसने अपने विभाग में अपनी केटगरी का प्रतिनिधित्व नहीं किया और बाबा साहब की विचारधारा का प्रचार-प्रसार नहीं किया जिसका परिणाम यह हुआ।
          आने वाले समय में जब संविधान खत्म हो जाएगा और पढ़े लिखे अधिकारी, कर्मचारी के घरों में औलाद अनपढ़ और बेरोजगार होगी तो यही औलाद है, इन अधिकारी और कर्मचारियों के फोटो पर जूते की माला टांगेगी और इनके फोटो पर थूकेगी। साथ ही यह सवाल भी करेगी कि एक अकेले डॉक्टर अंबेडकर ने हमारे भूखे, नंगे, अनपढ़ समाज को अधिकार देकर तुम्हे पढ़ लिखकर कर्मचारी, अधिकारी बनाया। लेकिन

जब संविधान खत्म हो रहा था तो आप लोग क्या कर रहे थे?? 

वह यही कहेंगे कि हमारे बाप दादा ने अधिकारी, कर्मचारी बनकर उन अधिकारों की रक्षा नहीं की उन्होंने समाज का जिस केटगरी से चुनकर आये उसका प्रतिनिधित्व नहीं किया।

जिसका परिणाम यह हुआ कि आज हम बेरोजगार, अनपढ़, भूखे, नंगे हो गए और पांच किलो राशन की लाइन में बैठे हैं।


"अब तो 5 किलो राशन भी नहीं मिलेगा क्योंकि बाप, दादा अधिकारी कर्मचारी बन गए तो बेटे को ना तो नौकरी मिलेगी ना राशन मिलेगा।"

"डगराराम पँवार "
"नवनीत, "प्रदेश अध्यक्ष, राष्टीय दलित साहित्य अकादमी, राजस्थान 9414608534

, नोट:- यह लेख,लेखक की नैतिकता पर चर्चा , स्वतंत्र विचारधारा पर आधारित है।